मितल हास्पीटल में गुरप्रीत सिंह का निधन क्या अवस्थाओ के चलते लापरवाही का नतीजा थी?
मितल हास्पीटल में गुरप्रीत सिंह का निधन 
क्या अवस्थाओ के चलते लापरवाही  का नतीजा थी? 
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गुरप्रीत सिंह की मौत अपने पीछे सवाल खडे कर गई है । जब मरीज के  बुलाने पर पानी पिलाने में इतनी देरी  हो रही थी तो यह भी सम्भव हो सकता है कि आक्सीजन की सप्लाई, दवाई आदि देने भी  में लापरवाही हुई हो?  
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अजमेर । 27 अप्रेल को रात्र लगभग 10 बजे ICU वार्ड 3 में  भर्ती गुरप्रीत सिंह  का  घर वालों को फोन आया, मुझे यहां पानी नहीं पिला रहे,  मै बहुत देर से पानी मांग रहा हूं। घरवालों ने अस्पताल मैनेजमेन्ट से सम्पर्क किया, और अस्पताल के बाहर बैठे अपने रिश्तेदार को फोन कर  यह बात यह बात बताई ।  तब तक वार्ड बाय का मरीज के भाई को फोन आया और कहने लगा आप मेरी शिकायत कर हो, भाई ने कहा  शिकायत नही की हमने तो मैनेजमेंट को यह बताया कि उसका ख्याल रखो पानी तो पिला दो, मरीज के भाई ने वार्ड बाय से माफी भी मांगी विनती की मेरे भाई का ख्याल रखो। तब तक  अस्पताल के बाहर बैठे मरीज के दूसरे भाई को  मैनेजमेन्ट ने  मरीज के पास भेजा उसने मरीज को पानी पिलाया सांत्वना दी की आप जल्दी ठीक हो जाओगे। लेकिन मरीज कहने लगा मुझे यहां से ले चलो मै यहां मर जाऊंगा। अगले दिन  28 अप्रैल  को  प्रात: 9-30 बजे मरीज के परिवार जनों को फोन करके वार्ड मे भुलाया वहां जाकर देगा तो  गुरप्रीत सिंह नहीं थे। 
 गुरप्रीत सिंह को  22 अप्रेल को पुष्कर रोड स्थित  मितल हास्पीटल में भर्ती  कराया गया था अगले दिन से ही  उसके हालात में सुधार होने के बजाय खराब होती चली गई।  कोविन्डा ICU वार्ड 3 में शिफ्ट कर ने के बाद भी उसे राहत नही मिल रही थी । 
लगातार 25, 26, 27 की सुबह और 27 अप्रेल की रात्रि तक  गुरप्रीत सिंह  यही कहता रहा यहां कोई सुविधा नही, पानी के लिये बुलाते, तो बहुत देर तक कोई  नहीं आता। अव्यवस्थाओं के चलते मरीज डिप्रेशन में आने लगा। घरवालों ने इसी बीच अस्पताल  मैनेजमेन्ट से सम्पर्क  बढाया , मैनेजमेन्ट ने दो दिन तक गुरप्रीत सिंह  के भाई को  मिलने दिया और भाई पानी वगैरा पिला कर आते और मरीज का होसला अफजाई कर आते, लेकिन  गुरप्रीत सिंह बेर बार  यह कहता  रहा में ठीक हूं मुझे यहां से  घर ले चलो मै जबरदस्ती फंस गया हूं, लेकिन घर वालों की अपनी मजबूरी थी । मरीज के भाई ने  एक बार  परिवार जनों उसकी मां, पत्नि बाप बहिन आदि से बात भी कराई। लेकिन मरीज का होसला अस्पताल के वार्ड बाय  के रवैये की लापरवाही,  अव्यवस्थाओं के कारण  गिरा हुआ था।  मरीज को समय पर पानी नही पिलाना फोन पर परिजनो  से  बात नही कराना। फोन चार्जर पर नहीं लगाना यह सब घटनाऐं मरीज को डिप्रेशन में ले गई।
किसी भी सरकारी या प्राईवेट अस्पताल में  कोई भी कितना प्रोटोकाल क्यों न हो किसी को भले ही मिलने नही देते लेकिन  मरीज को कम से कम फोन पर या विडियो काल से उसके परिजनों से दिन में एक दो बार सम्पर्क कराने में कहां परेशानी होती है? इससे तो मरीज को रिलीफ मिलता है और स्वास्थ्य में सुधार की चान्सेस बढ सकते है। हर समय मरीन परिजन के साथ आन लाईन रहे,  भले ही मरीज के  मुहं पर आक्सीजन लगी होने  के कारण बात नही करे लेकिन इशारों के संकेत से तो अपने परिजनों से बात कर आत्मिक सान्तवना आत्म विश्वास तो पा सकता है। 
कहीं पर भी किसी भी अस्पताल में  कोई भी मरीज भर्ती होता है तो इसका यह मतलब नही होना चाहिये कि इलाज के  चलते  उसका परिवार जनों से बिलकुल ही सम्पर्क ना रहे। बल्कि विडियो काल की व्यवस्था  की  जानी चाहिए कि मरीज और परिवार जन आमने -सामने सम्पर्क रहे, मरीज की वास्तविक स्थिति से परिजन परिचित रहें।
गुरप्रीत सिंह की मौत अपने पीछे सवाल खडे कर गई है । जब मरीज के  बुलाने पर पानी पिलाने मे इतनी देरी  हो रही थी तो यह भी सम्भव हो सकता है कि आक्सीजन की सप्लाई, दवाई आदि देने भी  में लापरवाही हुई हो?  
बहरहाल जो भी हुआ वह  ताउम्र दुखदाई  घटना है,  32 वर्षीय गुरप्रीतसिंह की  सवा साल पहले ही  शादी हुई थी,  मां बाप ने अपना बेटा, पत्नि ने अपना पति, सास ससुर ने अपना दामाद, बच्चो ने अपना चाचा, भाई भतीजा, परिवार ने हर सदस्य ने आप ना प्यारे दुलारे  को खो दिया। 
✍ जी. एस. लबाना
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