लाॅकडाउन !!! =============✍ जी. एस. लबाना
लाॅकडाउन  !!!  
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✍ जी. एस.  लबाना 
@ 9414007822
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आम जनता के स्वास्थ्य की  चिंतित सरकार लाॅकडाउन लगाकर जनता को स्वास्थ्य रखना चाहती है। यह अच्छी बात है।  
लाॅकडाउन में बैंक, मेडीकल स्टोर, ई-मित्र, पोस्ट आफिस आदि के साथ अन्य सरकारी कार्यालय दो बजे तक या पूरे दिन तक खुले रहते है । किराना की दुकाने, सब्जी मन्डी, निर्माण सामग्री विक्रेताओं की दुकानें, शराब विक्रेताओं की दुकानें 11 बजे तक । निर्माण कार्य  सुबह 9 से शाम 5 बजे तक। सरकारी व प्राईवेट ट्रैवलर्स बन्द हैं। थ्री वील्हर आटोरिक्शा, टू वील्हर  चल सकते हैं परन्तु 50% सवारी के  साथ। सरकार यह सब करके कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने का जतन कर आम जन के स्वास्थ्य की  कामना करती है।
स्वास्थ्य से जुडी सरकार की इस चिन्ता को भी समझें :- 
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सरकार को आम जन के स्वास्थ्य की चिन्ता हमेशा ही रहती है  यह चिन्ता कोरोना संक्रमण के फैलने से  पैदा नहीं हुई । जब भी  हमारे वैज्ञानिकों ने यह बताना आरम्भ किया कि अमुक वस्तु का सेवन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक  है। अमुक वस्तु का संकेत शराब,  धुम्रपान तम्बाकू आदि वस्तुओं को ज़हन में रख कर  सरल शब्दों से समझा जा सकता है । सरकार वैज्ञानिकों की राय मानती है, आम जन के स्वास्थ्य की चिन्ता करती है, इन तमाम अमुक वस्तुओं की  बिक्री या उत्पादन पर न तो  रोक  लगाती है और ना ही  ब्रिकी बन्द कर पाती है । हां इन अमुक वस्तुओं पर "वैधानिक चेतावनी" से अपना धर्म  निभाती है शायद इसीलिए हर अमुक वस्तु के प्रति  नग पर यह वैधानिक चेतावनी  छपवाती है कि  "अमुक वस्तु का सेवन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है"। इन  अमुक वस्तुओं की  बिक्री पर सरकार  की बहुत बढिया सख्त गाईड लाईनें  भी हैं जैसे शराब की बिक्री की दूकान  स्कूल, या किसी धार्मिक स्थल से 200 मीटर की दूरी पर  होनी चाहिए, धूम्रपान की बिक्री 18 वर्ष से कम  को नहीं की जा सकेगी, आदि ओर भी हैं, अब हो सकता है इनमें कुछ बदलाव हो गया हो, परन्तु इन सख्त नियम और गाईड लाईनों का पालन अमुक वस्तु विक्रेताओं, नियमों का पालन  कराने वाले जिम्मेदार विभागों, के साथ वो आमजन जो अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह है, कितना सावधानी से  करते हैं ? यह बात भी हमें अपने ज़हन में रखनी चाहिए। 
 मैं यह इस लिये कह रहा हूं कि निश्चित समय पर  दुकानें बन्द होने के बाद भी अमुक  वस्तुओं के शौकीन उपभोक्ता बन्द दुकानों के आस पास मन्डराते देखे जा सकते हैं जो अधिक पैसे देकर भी सामान खरीद करने के लिए तैयार रहते हैं, इससे भ्रष्टाचार की गलियों को मजबूती मिलती है। वैसे इन अमुक वस्तुओं  पर एम आर पी दर  लिखी तो होती है पर विक्रेता इसे नहीं मानते। एम आर पी दर वस्तुओं पर लिखी होती है दुकानों के सूचना पट्ट पर नहीं, उपभोक्ता एम आर पी दर देखता नहीं और देख ले तो विक्रेता का एक ही जवाब, अब दरें बढ गई है।
 उपभोक्ता एम आर पी दर  लागू कराने के प्रति जागरूक नहीं रहते कोई भूले भटके कोई जाग भी जाए, शिकायत कर भी दे तो दो दिन बात हालात वहीं आ जाते है। 
यह इसलिये कह रहा हूं कि सरकार का काम कानून बनाना, सम्बधित विभाग का काम कानून का पालन कराना और  आम जन का काम कानून का पालन करना है यह तीनों  अलग अलग व्यवस्थाऐं हैं।
खामी यह रह जाती है कि  समय पर अमुक वस्तुओं की बिक्री  बन्द होने के बाद भी सामान बिकता है ।
स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह उपभोक्ता अधिक पैसे देकर भी माल खरीद करता है,18 से कम उम्र के बच्चों से घर बैठे अमुक सामान मंगवाता है । तब  सरकार, सरकारी मशीनरी को या विक्रेता को ही हम दोषी कैसे मान ले? आमजन की नजर में धार्मिक स्थल भले ही बहूत बढी आस्था का केन्द्र हो पर सरकारी विभाग में रजिस्ट्रेशन नहीं है तो सरकारी विभाग उसे धार्मिक स्थल की परिभाषा से अलग रख  कर देखता है । 
सरकार की नीतियां भी अजब-गजब की होती हैं। एक तरफ वैधानिक चेतावनी से माल बेचने के लाइसेन्स देती है और माल कम बिके तो राज्य स्तरीय बैठकें बुलाकर माल कम क्यों बिका इस पर चिन्तन मंथन भी  करती है ।
अमुक वस्तुओं की दुकान बन्द होने की सीमा आम दुकानों की तरह हो, एम आर पी दर लागू हो या बिल के साथ मिल बिके  तो शायद कुछ भ्रष्ट रास्ते की गलियां बन्द हो सकती है। वहीं वैधानिक चेतावनी के बाद भी कोई अपने स्वास्थ्य  के प्रति लापरवाह रहे, तो सरकार और  सरकारी विभाग क्या करे? 
अब वापिस लाॅकडाउन की बात :-
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लाॅकडाउन गाइड लाइन में डबल सवारी पर रोक, डबल सवारी या सिंगल सवारी बेवजह घूमना, मास्क न पहनना, इन सब का सख्ती से पालन कराना कानून पालनकर्ताओं का धर्म और ड्यूटी है, इसी के तहत ड्यूटी के दौरान जगह जगह पर बने चैक पोस्टों पर वाहनों को रोकना, कारण पूछना, कागजात मांगना, वाहन जब्त करने के साथ जुर्माना भी लगा रहे हैं सरकार की आय भी बढा रहे है । इस कारण स्वंय  कानून पालनकर्ता कोरोना  संक्रमण भी हो सकते है, हुऐ भी हैं । ड्यूटी पालन का धर्म निभाते हुए कुछ की  मृत्यु तक होने के ह्रदय घातक  दुख-दाई समाचार भी  मिले है ।  
 जब किराने की  दुकाने, सब्जी मन्डी 11 बजे तक खुलती है, तो  बैंक, पोस्ट अन्य सरकारी कार्यालय ई-मित्र मेडीकल दो बजे तक  या अधिक देर तक क्यों ? कुछ दुकाने आधा दिन कुछ पूरा दिन खुलेंगी  तो शहर में आवाजाही कम ही सही पर दिन भर ही रहेगी। 11 बजे तक बैंक, पोस्ट में काफी भीड रहती है। आमजन भीड से बचने के  लिये पोस्ट, बैंक  सरकारी  काम के लिये घर से 11 बजे निकलने की सोच रखता है। 
निर्माण कार्य  चालू रहते है मजदूर टू- विहीलर पर दो जनें आते जाते है, निर्माण  सामग्री  की दुकाने भले ही 11 बजे बन्द हो जाऐ लेकिन सामान की सप्लाई 11 बाद ही हो पाती है, निर्माण  सामग्री  में ईन्ट पत्थर बजरी की ही जरूरत नहीं पडती इसमें नल-बिजली, लकडी, फर्नीचर आदि  का सामान भी शामिल होना चाहिए । निर्माण  स्थल पर सामग्री  समय पर नहीं पहुंचती तो मजदूर शाम 5 बजे से  पहले ही घर वापसी करता है। वाहनों की आवा जाही , रास्ते में कोई गाडी  पिंचर हो जाय, या    खराब हो जाय तो ठीक करने वालों को दूकान खोलने की छूट नहीं । 
जो स्वंय वाहन चलाना नहीं जानता या वाहन उसके पास है ही नहीं वह किसी के साथ बैठकर, या घर दो सदस्य एक वाहन पर या परिवार में कोई महिला को लेकर घर परिवार के जरूरी काम से आऐगे-जाऐंगे, बडती पैट्रोल की कीमत के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान पर एक साथ काम पर जाने वाले मजदूर, मित्र या रिश्तेदार अलग अलग वाहन का इस्तेमाल कैसे करेंगे ?  ऐसी स्थिति में तो वाहन पर डबल सवारी की आवाजाही का होना भी मुमकिन ही है। परन्तु नियम पालनकर्ताओं की ड्यूटी है चालान करना। इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि वह घर ग्रस्ती चलाने के लिये किस मजबूरी  में जा रहा है? 
सरकार को लोकडाउन के नियम उक्त बारीक तकनीकी सोच के साथ बनाने चाहिए सभी काम काज की सीमा  एक साथ प्रात: 5 से दोपहर 1 बजे तक कर देनी चाहिए। 
 या घर से वेजय बाहर निकलने वाले स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह व्यक्ति  अपने साथ मजबूत ठोस बहाना बनाकर निकलें, निकलते ही होंगे!  जिससे वे जुर्माने से भले ही बच जाऐ और  दूसरों के जीवन को  संकट में डाल दें, क्योकि जिन्हे अपनी परवाह नहीं दूसरों की जान की परवाह क्यों करेगे। इसी तरह मजबूरी या जरूरी काम से निकलने वाले भी जिस  काम के लिये जाऐं उसका अपने हाथ में  बैनर लेकर या गले में सूचना पट्ट लटकाकर ही निकलें कि वे किस काम से और क्यू कहां से कहां जा रहे है ! इस से ओर कुछ नहीं कम से कम  रास्ते मे रोका -रोकी और  संक्रमण फैलने की आशंका कम होगी ! समय बचेगा, मजदूर समय पर काम पर पहूंचेगा, देरी से आने पर मालिक वापस घर नहीं भेजेगा!
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